Skip to main content

MENU👈

Show more

Cracking UPSC Mains Through Current Affairs Analysis

करंट अफेयर्स में छिपे UPSC मेन्स के संभावित प्रश्न प्रस्तावना UPSC सिविल सेवा परीक्षा केवल तथ्यों का संग्रह नहीं है, बल्कि सोचने, समझने और विश्लेषण करने की क्षमता की परीक्षा है। प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) तथ्यों और अवधारणाओं पर केंद्रित होती है, लेकिन मुख्य परीक्षा (Mains) विश्लेषणात्मक क्षमता, उत्तर लेखन कौशल और समसामयिक घटनाओं की समझ को परखती है। यही कारण है कि  करंट अफेयर्स UPSC मेन्स की आत्मा माने जाते हैं। अक्सर देखा गया है कि UPSC सीधे समाचारों से प्रश्न नहीं पूछता, बल्कि घटनाओं के पीछे छिपे गहरे मुद्दों, नीतिगत पहलुओं और नैतिक दुविधाओं को प्रश्न में बदल देता है। उदाहरण के लिए, अगर अंतरराष्ट्रीय मंच पर जलवायु परिवर्तन की चर्चा हो रही है, तो UPSC प्रश्न पूछ सकता है —  “भारत की जलवायु नीति घरेलू प्राथमिकताओं और अंतरराष्ट्रीय दबावों के बीच किस प्रकार संतुलन स्थापित करती है?” यानी, हर करंट इवेंट UPSC मेन्स के लिए एक संभावित प्रश्न छुपाए बैठा है। इस लेख में हम देखेंगे कि हाल के करंट अफेयर्स किन-किन तरीकों से UPSC मेन्स के प्रश्न बन सकते हैं, और विद्यार्थी इन्हें कैसे अपनी तै...

India–EU Free Trade Agreement (FTA): A Step Toward Strategic Economic Cooperation and New Opportunities

भारत-यूरोपीय संघ मुक्त व्यापार समझौता: रणनीतिक आर्थिक सहयोग की दिशा में बड़ा कदम

10 सितंबर 2025 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी इतालवी समकक्ष जॉर्जिया मेलोनी की मुलाक़ात सिर्फ़ एक औपचारिकता नहीं थी। इस मुलाक़ात ने भारत और यूरोपीय संघ (ईयू) के बीच लंबे समय से प्रस्तावित मुक्त व्यापार समझौते (एफ़टीए) को नई ऊर्जा दी। भारत ने इस मौके पर इटली के समर्थन के लिए आभार जताया, जो यह संकेत देता है कि इस बार वार्ता केवल काग़ज़ी नहीं, बल्कि वास्तविक प्रगति की दिशा में बढ़ रही है।

क्यों महत्वपूर्ण है यह समझौता

भारत-ईयू एफटीए पर बातचीत पिछले एक दशक से चल रही है। यह समझौता 20 ट्रिलियन डॉलर से अधिक की संयुक्त जीडीपी वाले 27 देशों के समूह और विश्व की सबसे तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्था के बीच व्यापारिक रिश्तों को नई ऊंचाई देने की क्षमता रखता है।

  • भारत के लिए फ़ायदा – सेवा क्षेत्र, फ़ार्मास्यूटिकल्स और कृषि उत्पादों को यूरोपीय बाज़ार में बेहतर पहुंच मिलेगी।
  • ईयू के लिए फ़ायदा – भारत के विशाल उपभोक्ता बाज़ार, कुशल कार्यबल और हिंद-प्रशांत क्षेत्र में रणनीतिक स्थिति का लाभ मिलेगा।

इटली का समर्थन खास मायने रखता है क्योंकि इटली ईयू में प्रभावशाली भूमिका निभाता है और हाल के वर्षों में भारत के साथ रक्षा, प्रौद्योगिकी और नवीकरणीय ऊर्जा जैसे क्षेत्रों में सहयोग भी बढ़ा है।

चुनौतियाँ भी कम नहीं

एक व्यापक एफटीए का रास्ता हमेशा सीधा नहीं होता।

  • भारत कृषि और लघु-मध्यम उद्यमों की सुरक्षा पर ज़ोर देता है, जबकि ईयू बौद्धिक संपदा अधिकार और पर्यावरणीय मानकों पर सख़्त रुख़ रखता है।
  • ईयू श्रम, मानवाधिकार और स्थिरता जैसे मुद्दों को समझौते में शामिल करना चाहता है, जबकि भारत पारंपरिक रूप से व्यापार पर ही केंद्रित रहता आया है।
  • दोनों पक्षों पर घरेलू राजनीतिक दबाव भी हैं – भारत में किसानों और एमएसएमई की चिंताएँ, वहीं यूरोप में संरक्षणवाद और खुले बाज़ार के बीच संतुलन।

आर्थिक से बढ़कर रणनीतिक महत्व

यह समझौता केवल व्यापार तक सीमित नहीं। यह चीन के बढ़ते प्रभाव का संतुलन बनाने और महामारी के बाद आपूर्ति श्रृंखलाओं में विविधता लाने का भी साधन है।

  • भारत के लिए – आत्मनिर्भर भारत की दिशा में प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा।
  • ईयू के लिए – हिंद-प्रशांत क्षेत्र में मज़बूत आर्थिक और भू-राजनीतिक उपस्थिति।

इस संदर्भ में मोदी-मेलोनी संवाद केवल द्विपक्षीय वार्ता नहीं, बल्कि रणनीतिक सोच और धैर्यपूर्ण कूटनीति का संकेत है।

आगे की राह – लचीलापन और व्यावहारिकता

एफटीए को सफल बनाने के लिए दोनों पक्षों को यथार्थवादी दृष्टिकोण अपनाना होगा।

  • भारत को अपनी ताक़त—डिजिटल अर्थव्यवस्था, नवीकरणीय ऊर्जा और फार्मा क्षेत्र—का लाभ उठाते हुए डेटा सुरक्षा और स्थिरता जैसे ईयू के मुद्दों को संबोधित करना होगा।
  • ईयू को भारत की विकासात्मक प्राथमिकताओं को समझना होगा और अत्यधिक सख़्त मानकों से बचना होगा।
  • विश्वास निर्माण के लिए डिजिटल व्यापार, सेवा क्षेत्र या नवीकरणीय ऊर्जा जैसे क्षेत्रों में छोटे-छोटे समझौते बड़े सौदे की नींव रख सकते हैं।

साझा मूल्य और भविष्य की संभावना

यदि भारत-ईयू एफटीए सफल होता है, तो यह न केवल दोनों की साझेदारी को नई परिभाषा देगा, बल्कि लोकतंत्र, बहुपक्षवाद और स्थायी विकास जैसे साझा मूल्यों को भी मज़बूती देगा। प्रधानमंत्री मोदी द्वारा इटली के समर्थन की सराहना यह संकेत है कि अब दोनों पक्षों पर इस सद्भावना को ठोस परिणामों में बदलने की जिम्मेदारी है।

आगे का रास्ता धैर्य, समझौता और साझा दृष्टि की मांग करता है। अगर यह संभव हुआ तो भारत और यूरोपीय संघ एक नए वैश्विक आर्थिक संतुलन की मिसाल बन सकते हैं।



Comments

Advertisement

POPULAR POSTS